खरी-खोटी: फिर कलह और कौशल का मुकाबला है मध्यप्रदेश में
1 min read– पवन वर्मा
मात्र चार महीने पहले हुए मध्यप्रदेश के विधानसभा चुनावों के नतीजों से यह तो स्पष्ट हो गया है कि यहां भाजपा की शानदार विजय का कारण कांग्रेस की कलह और भाजपा का चुनाव लड़ने का कौशल ही था। विधानसभा चुनावों के दौरान जहां भाजपा चुनाव लड़ने में अपना कौशल दिखाती रही तो कांग्रेसी अपनी चिरपरिचित शैली में आपसी खींचतान और कलह में उलझे रहे ,जिसके चलते कांग्रेस को करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा तो भाजपा ने भारी बहुमत के साथ प्रचंड जीत हासिल की।लोकसभा के चुनावों में भी मध्यप्रदेश के राजनीतिक प्रेक्षकों का मानना है कि यहां एक बार फिर दोनों पार्टियों के बीच कलह और कौशल का ही मुकाबला दिखाई देगा।
वैसे इस बार विधानसभा चुनावों में कांग्रेस में सारे टिकिट कमलनाथ और दिग्विजय सिंह ने ही बांटे थे। कहा जाता है कि दिग्विजय सिंह ने इस मामले में दोहरा खेल खेला। उन्होंने अपने जीतने वाले कई समर्थकों को तो टिकिट दिलाया ही लेकिन कई ऐसे उम्मीदवारों को भी टिकिट दिला दिया जिन्हें वे राजनीति से निपटाना चाहते थे। वैसे दिग्विजय सिंह की यह विशेषता है कि उन्हें मध्यप्रदेश के सभी क्षेत्रों के कांग्रेस कार्यकर्ताओं के नाम मुंह जबानी याद हैं और वे सभी को नाम और चेहरे से पहचानते हैं। पूरे मध्यप्रदेश के जातिगत समीकरण और क्षेत्रों की अन्य विशेषताएं भी उन्हें मुंह जबानी याद हैं पर अपने इसी कौशल का उपयोग उन्होंने अपनी पार्टी को जिताने में नहीं बल्कि कांग्रेस में अपने विरोधियों को निपटाने में किया। इसके चलते अब कांग्रेस में दिग्विजय सिंह के विरोधी रहे नेता या तो भाजपा में चले गए हैं या फिर मन मारकर कांग्रेस में हैं तो पर चुनाव लड़ने से साफ इंकार कर चुके हैं।
मध्यप्रदेश में भीतरघात ,तोड़फोड़ और विरोध की कांग्रेस में पुरानी परम्परा रही है। पहले अर्जुन सिंह और शुक्ल बंधुओं के मतभेद चर्चा में रहते थे। तब कांग्रेस में केवल दो धड़े दिखाई देते थे लेकिन आज मध्यप्रदेश में कांग्रेस कितने धड़ों में बंटी है यह गिनना तो किसी भी राजनीतिक पंडित के लिए संभव नहीं है। आज कांग्रेस में कलह के चलते ऐसा कोई नेता नहीं बचा है जो लोकसभा का चुनाव लड़ना चाहता हो। स्वयं दिग्विजय सिंह कांग्रेस की बागडोर अपने हाथ में रखना चाहते हैं लेकिन चुनाव नहीं लड़ना चाहते थे। यही हाल कमलनाथ का है। वे भी अपनी चुनावी सीट अपने बेटे को थमा चुके हैं। दिलचस्प यह है कि जीतू पटवारी जो स्वयं प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष हैं वे भी चुनाव लड़ने से कन्नी काट चुके हैं। कांग्रेस को विदिशा से पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के विरुद्ध चुनाव लड़ने के लिए बमुश्किल प्रत्याशी मिला जो पांच बार चुनाव हार चुका है। यहां पूर्व विधायक शशांक भार्गव ,सहज सरल मिलनसार डॉ. मेहताब सिंह यादव अंदरूनी कलह का शिकार होकर अपनी पूरी टीम के साथ कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हो चुके हैं। यही हाल भोपाल सहित लगभग एक दर्जन सीटों पर बना हुआ है। भोपाल से कांग्रेस के कद्दावर नेता एवं पूर्व मंत्री पी.सी. शर्मा के चुनाव लड़ने से मना कर चुकने पर अंत में अरुण श्रीवास्तव को मैदान में उतारा है । दूसरी ओर भाजपा का कौशल विधानसभा चुनावों से ही देखने को मिल रहा है। विधानसभा चुनावों की तरह ही लोकसभा चुनावों में भाजपा ने चुनाव की घोषणा से पहले ही अपने उम्मीदवारों के नामों की घोषणा कर दी। नये नवेले मुख्यमंत्री भी अपने कौशल से चुनावी रणनीति साधने में लगे हुये हैं। एक ओर वे लोक लुभावन निर्णयों से अपनी छवि बनाने में लगे हुए हैं वहीं वे सारे भाजपा नेताओं को भी साध रहे हैं। वे भाजपा के साथ-साथ कांग्रेस के कई धुरंधर माने जाने वाले नेताओं को भी अपने पक्ष में लाने में सफल सिद्ध हुए हैं। भाजपा नेतृत्व के कौशल का ही परिणाम है कि कभी अग्निमुखी मानी जाने वाली उमा भारती भी अब शांत और संयत है, तो तीखे तेवरों के लिए प्रसिद्ध सुमित्रा महाजन भी अब नरम पड़ती दिखायी दे रही है। वहीं भोपाल की सांसद साध्वी प्रज्ञा ठाकुर टिकिट कटने के बाद भी बेहद नियंत्रित हैं। इसी कौशल का उदाहरण हर एक क्षेत्र में दिखाई दे रहा है जहां टिकिट कटने वाला हर नेता फिलहाल तो बेहद शांत, संयत और नियंत्रित नजर आ रहा है।
इसे भी भाजपा का कोशल ही माना जा रहा है कि भाजपा में रोजाना कांग्रेस के अनेक छोटेबड़े नेता शामिल हो रहे हैं जबकि कांग्रेस अपनी कलह में ही इतनी उलझी हुई है कि जाने वाले नेता कार्यकर्ताओं के नाम कई दिनों तक चर्चित रहने के बाद भी डैमेज कंट्रोल की कोई कोशिश नहीं की जा रही है।
मध्यप्रदेश में कलह और कौशल के इस मुकाबले का निर्णय तो लोकसभा चुनावों के बाद दिखाई देगा। फिलहाल तो यहां प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ.मोहन यादव और भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष वी.डी.शर्मा अपनी पार्टी के कौशल पर गर्वित दिख रहे हैं तोकांग्रेyup प्रदेशाध्यक्ष जीतू पटवारी कांग्रेस की कलह के बीच लगातार पार्टी छोड़कर जा रहे नेताओं को कोसते नजर आ रहे हैं। (विफी) (लेखक वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक हैं)