स्वतंत्रता संग्राम के वीर सेनानियों की कुर्बानियों को याद रखना,सम्मान देना हमारा कर्तव्य स्वामी चिदानन्द सरस्वती
ऋषिकेश। भारत छोड़ो आंदोलन,जिसे अगस्त क्रांति के नाम से भी जाना जाता है, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण अध्याय है। 8अगस्त 1942 को महात्मा गांधी ने मुंबई के गोवालिया टैंक मैदान में अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के सत्र में इस आंदोलन की शुरुआत की। उन्होंने इस आंदोलन का आह्वान करते हुए‘करो या मरो’का नारा दिया और कहा कि अब समय आ गया है कि भारतीय अपना भविष्य स्वयं तय करें। भारत की स्वतंत्रता की कहानी बलिदान,संघर्ष,राष्ट्र के प्रति समर्पण और अटूट संकल्प की कहानी है। हमारे पूर्वजों ने स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए अनगिनत कठिनाइयों का सामना किया और अपनी जान तक की बाजी लगाई। आज का दिन उन वीर स्वतंत्रता सेनानियों की कुर्बानियों को याद करने का दिन है, जिन्होंने हमें आजादी दिलाने के लिए अपने प्राणों की आहुति दी। भारत के अस्तित्व को बनाये रखने के लिये हमारे पूर्वजों ने कई कुर्बानियाँ दी। उन्होंने अपने प्राणों की आहुति देकर हमें आजादी दिलाई आज का दिन उनके आदर्शों पर चलने का संदेश देता है। स्वतंत्रता संग्राम के वीर सेनानियों की कुर्बानियों को याद रखना और उन्हें सम्मान देना हमारा कर्तव्य है। स्वतंत्रता संग्राम के वीर सेनानियों को नमन करते हुए, हमें यह संकल्प लेना चाहिए कि हम उनके सपनों के भारत का निर्माण करेंगे जिसमें सभी की पहुंच स्वच्छ जल,शुद्ध हवा, पर्याप्त व सुरक्षित भोजन,शिक्षा तक सभी की पहंुच और सभी को बेहतर स्वास्थ्य सुविधायें उपलब्ध हो। जिस प्रकार 1942 में महात्मा गांधी ने“करो या मरो का नारा देकर भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत की थी। हम सभी को मिलकर पर्यावरण संरक्षण के लिए संकल्प करना होगा,प्लास्टिक प्रदूषण को रोकने के लिए हमें सिंगल यूज प्लास्टिक के उपयोग को कम करना होगा और पुनः उपयोग योग्य वस्तुओं का चयन करना होगा। हम सभी मिलकर इस संकल्प को पूरा करें और अपने पर्यावरण को सुरक्षित और स्वस्थ बनाएं। आज के समय में, जब पर्यावरणीय संकट हमारे सामने एक गंभीर चुनौती के रूप में खड़ा है, यह हमारा कर्तव्य बनता है कि हम आने वाली पीढ़ियों के लिए एक स्वच्छ और सुरक्षित पर्यावरण छोड़ें। हमें अपने कर्तव्यों को समझते हुए,आने वाली पीढ़ियों के लिए एक स्वच्छ और सुरक्षित पर्यावरण छोड़ने हेतु मिलकर प्रयास करने होेंगे।