कविता: “आई होली,आई रे”
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– आर . सूर्य कुमारी
फाग गाओ , फाग गाओ ,
आई होली , आई रे ।
ढोल बजाओ , ढोल बजाओ ,
आई होली , आई रे ।
आज फिर आया जगत में
रंग – गुलाल का मेला रे ,
होलिका चली गई जगत से
हर दिशा रंगों का खेला रे ।
न जाने कितनी आस लिए ,
देखी मुस्कानों की बेला रे ।
फाग गाओ , फाग गाओ ,
आई होली , आई रे ।
ढोल बजाओ, ढोल बजाओ ,
आई होली , आई रे ।
झूम – झूम के , झूम – झूम के ,
भारत – भूमि यों डोली रे !
छम – छम नाचे राधा – कन्हाई ,
धरती भी थिर – थिर थिरकीं रे ।
महक उठी वसंत – फुलवारी ,
आंख – आंख आज बहकी रे ।
फाग गाओ, फाग गाओ,
आई होली, आई रे ।
ढोल बजाओ – ढोल बजाओ ,
आई होली आई रे ।
पुए मिठाई , दूध मलाई ,
आई रुचि की बहार रे ।
गली – गली आई बहार तो ,
गली – गली में फुहार रे ।
वसंत में मानो आ गई
पावस की मल्हार रे।
फाग गाओ – फाग गाओ,
आई होली, आई रे
ढोल बजाओ, ढोल बजाओ
आई होली , आई रे ।(विफी)